7 May 2020

5836 - 5840 दिल खबर हयात ख़्वाब वजूद ज़ख्म आँसु दामन बोझ गम नजर शायरी



5836
मैने तो देखा था बस,
एक नजरके खातिर...
क्या खबर थी की रग रगमें,
समां जाओगे तुम.......!

5837
नहीं जो दिलमें जगह तो,
नजरमें रहने दो;
मेरी हयातको तुम अपने,
असरमें रहने दो;
मैं अपनी सोचको तेरी,
गलीमें छोड़ आया हूँ;
मेरे वजूदको ख़्वाबोंके,
घरमें रहने दो.......

5838
ज़ख्मोपें मरहम कभी लगाया तो होता,
मेरे आँसुओके लिए दामन बिछाया तो होता,
बदनामियोंके बोझसे जब गर्दन झुक गयी,
कन्धा अपना तुमने बढ़ाया तो होता,
गिर गिरके संभल जाते फिर गिरने के लिए,
अगर नजरोंने तेरी यूँ गिराया ना होता...

5839
खुशियाँ तो कबसे,
रूठ गई हैं मुझसे...
काश,
इन गमोंको भी किसीकी, 
नजर लग जाये.......

5840
मेरी नजरसे अगर तुम,
खुदको देखोगी...
तो हर रोज खुद--खुद अपनी,
नजर उतारोगी.......!
                                          भाग्यश्री

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