19 May 2020

5886 - 5890 दिल हाल सूरत वक़्त ज़ख़्म कलेजे सहर मरहम उम्र दर्द शायरी



5886
अब ये भी नहीं ठीक कि,
हर दर्द मिटा दें;
कुछ दर्द कलेजेसे,
लगानेके लिए हैं ll
                    जाँ निसार अख़्तर

5887
कब ठहरेगा दर्द--दिल,
कब रात बसर होगी...
सुनते थे वो आएँगे,
सुनते थे सहर होगी...
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

5888
हाल तुम सुन लो मिरा,
देख लो सूरत मेरी...
दर्द वो चीज़ नहीं हैं,
कि दिखाए कोई...!
               जलील मानिकपूरी

5889
वक़्त हर ज़ख़्मका,
मरहम तो नहीं बन सकता...
दर्द कुछ होते हैं,
ता-उम्र रुलाने वाले.......
सदा अम्बालवी

5890
ज़ख़्म कहते हैं,
दिलका गहना हैं...
दर्द दिलका,
लिबास होता हैं...!
                    गुलज़ार

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