13 May 2020

5866 - 5870 दिल इंतज़ार इज़ाजत यार लुत्फ़ निगाह रूबरू धड़कन आहट अश्क आँसू आँखें शायरी



5866
इंतज़ार--यार भी,
लुत्फ़ कमाल हैं...
आँखे किताबपर और,
सोच जनाबपर...!

5867
मैं कभी उसके खिलाफ,
कुछ नहीं कहूँगी...
अब भी उसकी आँखें,
मुझे देखा करती हैं...!

5868
सुनो,
मैं कौनसी आँखमें,
काजल लगाऊँ...?
मेरी तो दोनों आँखोंमें.
तुम बसते हो.......!

5869
वो आँख भी मिलानेकी,
इज़ाजत नहीं देते...
और ये दिल उनको,
निगाहोंमें बसानेपे तुला हैं...!

5870
उसको कभी देखा नहीं,
आँख भरके;
रूबरू होते ही,
पलके झुक जाती हैं l
कह दो उनसे,
गुज़रे हमारी गलियोंसे, आहिस्ता...
क्योंकि उनके क़दमोंकी आहटसे,
धड़कने मेरी रुक जाती हैं.......ll

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