5866
इंतज़ार-ए-यार
भी,
लुत्फ़ कमाल हैं...
आँखे किताबपर और,
सोच जनाबपर...!
5867
मैं कभी उसके
खिलाफ,
कुछ नहीं कहूँगी...
अब भी उसकी
आँखें,
मुझे देखा करती
हैं...!
5868
सुनो,
मैं कौनसी आँखमें,
काजल लगाऊँ...?
मेरी तो दोनों
आँखोंमें.
तुम बसते हो.......!
5869
वो आँख भी
मिलानेकी,
इज़ाजत नहीं देते...
और ये दिल
उनको,
निगाहोंमें
बसानेपे तुला हैं...!
5870
उसको कभी देखा
नहीं,
आँख भरके;
रूबरू होते ही,
पलके झुक जाती
हैं l
कह दो उनसे,
गुज़रे हमारी गलियोंसे, आहिस्ता...
क्योंकि
उनके क़दमोंकी आहटसे,
धड़कने मेरी रुक
जाती हैं.......ll
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