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जानता हूँ एक
ऐसे शख्सको,
मैं भी 'मुनीर'...
ग़मसे पत्थर हो गया,
लेकिन कभी रोया
नहीं...!
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पत्थरमें
एक ही कमी
हैं,
कुछ भी करों
वह पिघलता नहीं;
लेकिन उसकी एक
ही खूबी हैं,
वह कभी बदलता
भी नहीं l
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लोग इन्तजार करते रह
गये,
कि हमें टूटा
हुआ देखें...
और हम हैं
कि सहते सहते,
पत्थरके
हो गये.......!
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दिखाई कब दिया
करते हैं,
बुनियादके
पत्थर...
ज़मींमें
जो दब गये,
इमारत उन्हींपे क़ायम हैं...!
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पत्थरके
दिलमें भी,
जगह बना ही
लेता हैं...
ये प्यार हैं,
अपनी मंजिलको पा
ही लेता हैं !