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18 June 2017

1411 -1415 प्यार मुकाम हद्द शहर भीड इंसान लब हंसी चेहरे नसीब परेशान जमीर फरेब आँख आँसू दौलत शायरी


1411
अपनोंके बीच अपना तुम मुकाम ढुँढते हो,
फिर शहरकी भीडमें क्यों इंसान ढुँढते हो l

खुदगर्जीकी हद्द तो प अपनी देखिए,
हाथोंमें सर लिए हरदम परेशान घुमते हो l

जमीरका फरेब कहें या कहें नसीब तेरा,
जब भी चुमते हो बस खिंजा ही चुमते हो l

निदामत नहीं दिखती कभी चेहरेपें तेरे,
तभी मक्तलमें तुम सुब्हो-शाम घुमते हो l

फायक हैं वे जिन्होने गरीबोंका प्यार देखा,
तुम जो हो, के दौलतमें भगवान ढुँढते हो l

1412
आँखोंमें आ जाते हैं आँसू,
फिरभी लबोंपें हंसी
रखनी पड़ती हैं
ये मुहब्बत भी
क्या चीज हैं यारों?
जिससे करते हैं
उसीसे छुपानी पड़ती हैं

1413
ख़ुशी कहाँ हम तो,
"गम" चाहते हैं,
ख़ुशी उन्हे दे दो,
जिन्हें "हम" चाहते हैं l
जबरदस्ती मत माँगना साथ,
कभी ज़िन्दगीमें किसीका,
कोई ख़ुशीसे खुद चलकर आये,
उसकी 'ख़ुशी' ही कुछ और होती हैं...ll

1414
मैने पूछ लिया-
क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने ?
वो हँसी और बोली-
"मैं ज़िंदगी हूँ !
पगले तुझे जीना सिखा रही थी !!

1415
इस दुनियाँमें कोई किसीका,
हमदर्द नहीं होता l
लाशको बाजुमें रखकर अपने लोग ही पुछ्ते हैं...
"और कितना वक़्त लगेगा . . .?"