4701
भूलकर भी, मुसीबतमें,
न पड़ना
कभी...
खामखां अपने और
परायोंकी
पहचान
हो जाएगी...!
4702
यार तू साथ
था तो,
ज़मानेमें चर्चे थे
मेरे...!
तेरे जानेके
बाद आईना भी,
मुझसे मेरी पहचान
पूछता हैं...!
4703
पहचानकी नुमाईश,
ज़रा कम करो...
जहाँ
"मैं" लिखा हैं,
उसे "हम" करो...!
4704
खुशियाँ
कम और अरमान
बहुत हैं ।
जिसे भी देखो
परेशान बहुत हैं ।।
करीबसे देखा
तो निकला रेतका घर ।
मगर दूरसे
इसकी शान बहुत हैं ।।
कहते हैं सचका कोई मुकाबला
नहीं ।
मगर आज झूठकी पहचान बहुत हैं ।।
मुश्किलसे मिलता है
शहरमें आदमी
।
यूँ तो कहनेको इन्सान बहुत
हैं ।।
4705
टूटक़र बिख़र ना भी हमारा,
बहुत लाज़मी था l
शिद्दतसे दिल तोड़ा उसने,
शिद्दतसे चाहनेक़े बाद…!