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ग़लतफहमीयोंका बहाना बनाके,
नजरे चुराती हैं हमसे आप;
दिल चुराके न मिलनेकी,
सज़ा बारबार देती हैं आप ll
7297दिल-गिरफ़्ता ही सही,बज़्म सज़ा ली ज़ाएँ...याद-ए-ज़ानाँसे कोई,शाम न ख़ाली ज़ाएँ...अहमद फ़राज़
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ज़िंदा हूँ मगर, ज़िंदगीसे दूर हूँ मैं,
आज़ क्यों इस कदर मजबूर हूँ मैं,
बिना गलतीकी सज़ा मिलती
हूँ मुझे...
किससे कहूँ की आखिर बेक़सूर हूँ मैं...
किससे कहूँ की आखिर बेक़सूर हूँ मैं...
7299इश्क़के खुदासे पूछो,उसकी रज़ा क्या हैं...इश्क़ अगर गुनाह हैं,
तो इसकी सज़ा क्या हैं...?
7300
मुझको मोहब्बतकी,
ऐसी सज़ा ना दे...
या तो जी
लेने दे,
या तो मर ज़ाने दे...!
या तो मर ज़ाने दे...!