1421
दर्दकी बारिशोंमें हम अकेले ही थे,
जब बरसी ख़ुशियाँ . . .
न जाने भीड़ कहाँसे आ गई.......
1422
गुज़र गया आजका दिन भी,
युँ ही बेवजह...
ना मुझे फुरसत मिली...,
ना तुझे ख़्याल आया...!
1423
आज आसमानके तारोंने मुझे पूछ लिया;
क्या तुम्हें अब भी इंतज़ार हैं उसके लौट आनेका!
मैने मुस्कुराकर कहां;
तुम लौट आनेकी बात करते हो;
मुझे तो अब भी यकीन नहीं उसके जानेका !
1424
ख़्वाब ही ख़्वाब,
कब तलक देखूँ,
अब दिल चाहता हैं,
तुझको भी इक झलक देखूँ !
1425
खुदको लिखते हुए,
हर बार लिखा हैं 'तुमको'
इससे ज्यादा कोई,
जिंदगीको क्या लिखता !!