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4 September 2021

7606 - 7610 दिल ज़िन्दगी मौज़ शौक़ साहिल नज़र क़तरा ड़र लम्हा ख़ामोश मर ज़ाना मौत शायरी

 

7606
मौतक़े ड़रसे ज़ीते नहीं,
एक़ लम्हा भी...
लोग ज़ाने ज़िन्दगीसे फिर,
मुहोब्बत क्यों क़रते हैं.......?

7607
मौज़क़ी मौत हैं,
साहिलक़ा नज़र ज़ाना;
शौक़ क़तराक़े क़िनारेसे,
ग़ुज़र ज़ाता हैं.......

7608
आख़री हिचक़ी,
तेरे दामनमें आए...
मौत भी मैं,
शायराना चाहता हूँ...!

7609
मौत, आक़े हमक़ो,
ख़ामोश तो क़र गई तू...
मगर सदियों दिलोंक़े अंदर,
हम गूंज़ते रहेंगे.......
फ़िराक़ गोरख़पुरी

7610
मौतक़े संग वफ़ाएं,
दफ़न नहीं होती...
सच्ची मोहब्बतक़ी अदाएं,
क़भी क़म नहीं होती.......!