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6 January 2020

5296 - 5300 दुनिया जादू यक़ीन हक़ीक़त शक़ ख़बर खफा दुश्मन आँसु शरारत मंझिल उम्र आँख शायरी


5296
एक उम्र वो थी की,
जादू पर भी यक़ीन था...
एक उम्र ये हैं की,
हक़ीक़तपर भी शक़ हैं...!

5297
फ़ासलोंको ख़बर हो चुकी थी;
नज़दीकियोंकी उम्र हो चली हैं...

5298
आँखे जो आपको समझ सके,
वहीं अपने हैं l
वरना खूबसूरत चेहरे तो,
दुश्मनोंके भी होते हैं ll

5299
जिस दिन बंद कर ली हमने आँखें,
कई आँखोंसे उस दिन आँसु बरसेंगे;
जो कहते हैं के बहुत तंग करते हैं हम,
वही हमारी एक शरारतको तरसेंगे...

5300
मंझिल तेरी यहीं थी,
पर उम्र लगाई तूने यहाँ आते आते...
क्या मिला तुझे दुनियासे खफा हो के,
अपनोंनेही जलाया तुझे जाते जाते...