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11 August 2022

8976 - 8980 दोस्ती दिल क़ारवाँ ठोक़र ग़म फ़साना राह शायरी

 

8976
दोस्ती छूटे छुड़ाएसे,
क़िसूक़े क़िस तरह...
बंद होता ही नहीं रस्ता,
दिलोंक़ी राहक़ा.......
               वलीउल्लाह मुहिब

8977
ज़ुनूँने आलम--वहशतमें,
ज़ो राहें निक़ाली हैं...
ख़िरदक़े क़ारवाँ आख़िर,
उन्ही राहोंपें चलते हैं........
आल--अहमद सूरूर

8978
चाहा था ठोक़रोंमें,
ग़ुज़र ज़ाए ज़िंदग़ी...
लोगोंने संग़--राह,
समझक़र हटा दिया...
             सालिक़ लख़नवी

8979
बीच रस्तेमें बदल ली हैं,
ज़ो राहें तुमने...
दूर तक़ हम भी क़हाँ,
साथ थे ज़ानेवाले.......
अब्दुल्लाह नदीम

8980
तुम क़िसी संग़पें अब,
सरक़ो टिक़ाक़र सो ज़ाओ...
क़ौन सुनता हैं शब--ग़मक़ा,
फ़साना सर--राह.......
               अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री