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9 October 2020

6606 - 6610 प्यार एहसान नफरत दुश्मनी अंजाम याद क़यामत ईमान लिहाज़ क़सम शायरी

 

6606
खातिरसे या लिहाज़से,
मैं मान तो गयी...
झूठी क़समसे,
तेरा ईमान तो गया...

6607
समेट न सकोगे,
जिसे तुम क़यामत तक...
क़सम तुम्हारी,
तुम्हे इतना प्यार करते हैं...!

6608
एक बार भूलसे ही कहाँ होता,
की हम किसी औरके भी हैं;
खुदा क़सम हम,
तेरे सायेसे भी दूर रहते.......

6609
तू याद बहोत आया,
क़समसे, हर शामके बाद...
कभी आग़ाज़से पहले,
कभी अंजामके बाद.......

6610
प्यार, एहसान, नफरत, दुश्मनी,
जो चाहो वो मुझसे करलो...
आपकी क़सम,
वहीं दुगुना मिलेगा.......