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26 October 2022

9296 - 9300 फ़िक़्र रौशन ग़लियाँ आदाब सुख़न शायरी

 

9296
फ़िक़्र--मेआर--सुख़न,
बाइस--आज़ार हुई...
तंग़ रक़्ख़ा तो,
हमें अपनी क़बाने रक़्ख़ा ll
                          इक़बाल साज़िद

9297
हमारे दमसे हैं,
रौशन दयार--फ़िक़्र--सुख़न...
हमारे बाद ये ग़लियाँ,
धुआँ धुआँ होंगी.......
सज़्ज़ाद बाक़र रिज़वी

9298
बे-तक़ल्लुफ़ ग़या,
वो मह दम--फ़िक़्र--सुख़न l
रह ग़या पास--अदबसे,
क़ाफ़िया आदाबक़ा ll
                        मुनीर शिक़ोहाबादी

9299
सुख़न ज़िनक़े क़ि,
सूरत ज़ूँ ग़ुहर हैं बहर--मअनीमें,
अबस ग़लताँ रख़े हैं,
फ़िक़्र उनक़े आब--दानेक़ा.......
वलीउल्लाह मुहिब

9300
सहींफ़े फ़िक़्र--नज़रक़े,
ज़ो दे ग़ए तरतीब...
वहीं तो शेर--सुख़नक़े,
पयम्बरोंमें रहे.......
                          अनवर मीनाई