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9 June 2019

4331 - 4335 बात फूरस्त ख़्वाहिश बदमाश मसरूफ शामिल फुरसत आलम क़रीब लम्हे शायरी


4331
ये जो चंन्द फूरस्तके लम्हे,
मिलते हैं जीनेके...
मैं उन्हें भी,
तुम्हे सोचते हुए ही खर्च कर देता हूँ...!

4332
कुछ लम्हे...
तुझसे बात करनेकी हसरत हैं बस;
मैने कब कहां,
अपना सारा वक़्त मुझे दे दो.......

4333
तलब ये नहीं कि,
किसी औरकी यादोंका...
हिस्सा हो जाऊँ !
ख़्वाहिश हैं, लम्हे भरके लिए ही हीं,
तेरे सबसे क़रीब हो जाऊँ.......!

4334
ये लम्हे बहुत बदमाश हैं,
जो तुम्हारे साथ गुज़ारूँ तो...
झटसे गुज़र जाते हैं;
और जब तुम नहीं होते तो...
मानो ठहरसे जाते हैं.......!

4335
"मेरी मसरूफियतके हर लम्हेमें,
शामिल हैं, तुम्हारी यादें...
सोचो....... मेरी फुरसतोंका,
आलम क्या होगा.......!"