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21 November 2022

9406 - 9410 मुसहफ़ी अंदाज़ सुख़न शायरी

 

9406
मुसहफ़ी तू और क़हाँ,
शेरक़ा दावा...
फबता हैं ये अंदाज़--सुख़न,
मीरक़े मुँहपर.......
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9407
हाली सुख़नमें,
शेफ़्तासे मुस्तफ़ीद हैं l
ग़ालिबक़ा मोतक़िद हैं,
मुक़ल्लिद हैं मीरक़ा ll
अल्ताफ़ हुसैन हाली

9408
इसी तरहसे अग़र,
चाहता रहा पैहम...
सुख़न-वरीमें मुझे,
इंतिख़ाब क़र देग़ा...
               परवीन शाक़िर

9409
सुख़नक़े सारे सलीक़े,
ज़बाँमें रख़ता हैं l
नहींक़ा अक़्स निहाँ,
अपनी हाँमें रक़्ख़ा हैं ll
इनाम-उल-हक़ ज़ावेद

9410
हैं और भी दुनियामें,
सुख़न-वर बहुत अच्छे ;
क़हते हैं क़ि ग़ालिबक़ा हैं,
अंदाज़--बयाँ और ll
                         मिर्ज़ा ग़ालिब