2141
अपने हालातका,
खुद पता नहीं मुझको,
मैने औरोंसे सुना हैं की,
मैं परेशां हूँ आजकल. . .
2142
तनहाईमें फरियाद तो कर सकता हूँ,
वीरानेको आबाद कर सकता हूँ,
जब चाहूँ तुम्हे मिल नहीं सकता,
लेकिन जब चाहूँ तुम्हे याद कर सकता हूँ।
2143
तरस गया हूँ अब तो ख़ुदा मैं...
उसे सुननेको।
एक बार उसको कह दो
होठ ही हिला दे.......
2144
ईद भी आ गयी,
तुम ना आये मुलाकातके लिये
हमने चाँद रोका भी था,
एक रातके लिये. . . !
2145
वो अल्फ़ाज़ ही क्या,
जो समझाने पड़े...
हमने मोहब्बत की थी,
कोई वकालत नहीं.......!