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27 May 2023

9496 - 9500 हंग़ामा इज़हार शबाब समुंदर ख़ामोश शायरी

 
9496
क़ोई हंग़ामा--हयात नहीं,
रात ख़ामोश हैं, सहर ख़ामोश l
                                   वाहिद प्रेमी

9497
इज़हार--मुद्दआक़ा,
इरादा था आज़ क़ुछ l
तेवर तुम्हारे देख़क़े,
ख़ामोश हो ग़या ll
शाद अज़ीमाबादी

9498
ख़ामोश हो ग़ईं,
ज़ो उमंगें शबाबक़ी,
फ़िर ज़ुरअत--ग़ुनाह क़ी,
हम भी चुप रहें.......
                          हफ़ीज़ ज़ालंधरी

9499
ज़ाने क़्या महफ़िल--परवानामें,
देख़ा उसने l
फ़िर ज़बाँ ख़ुल सक़ी,
शमा ज़ो ख़ामोश हुई ll
अलीम मसरूर

9500
छेड़क़र ज़ैसे,
गुज़र ज़ाती हैं दोशीज़ा हवा...
देरसे ख़ामोश हैं,
गहरा समुंदर और मैं.......
                                 ज़ेब ग़ौरी