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7 September 2017

1711 - 1715 दिल मोहब्बत ज़िंदगी कहानी किताब बाते फितरत अदालत इंसाफ बेगुनाह चोरी मेहरबानी शायरी


1711
मोहब्बत नहीं हैं कोई किताबोंकी बाते !
समझोगे जब रोकर काटोगे रातें !
जो चोरी हो गया तो पता चला दिल था हमारा !
करते थे हम भी कभी किताबोंकी बाते !

1712
फितरतकी अदालतमें,
इंसाफ कहाँ होता हैं।
सजा उसीको मिलती हैं,
जो बेगुनाह होता हैं।।

1713
बिगड़ी हुई ज़िंदगीकी बस इतनीसी कहानी हैं;
कुछ बचपनसे ही हम लोफर थे;
बाकी कुछ आप जैसे दोस्तोंकी मेहरबानी हैं।

1714
मैं ख़ामोशी तेरे मनकी,
तू अनकहां अलफ़ाज़ मेरा…
मैं एक उलझा लम्हा,
तू रूठा हुआ हालात मेरा...!!!

1715
जिन्दगी आजकल गुजर रही हैं,
परेशानियोंके दौरसे.......
एक जख्म भरता नहीं,
दूसरा आनेकी जिद करता हैं...