1866
लोगोंने रोज़ ही,
नया कुछ माँगा खुदासे...
एक हम ही हैं जो तेरे,
ख्यालसे आगे न गये..!
1867
ख़ामोशसा माहौल और,
बेचैनसी करवट हैं ...!
ना आँख लग रही हैं और
ना रात कट रही हैं...!!!
1868
चाहत ये की वो मिल जाये,
जिद्द ये हैं की जिंदगीभरके लिए...!
1869
काँटोंका नामही बदनाम हैं...
चुभती तो निगाहेभी हैं...
अल्फाज तो यूँही बदनाम हैं...
चुभती तो अपनोंकी ख़ामोशी भी हैं.......
1870
किस हक़से माँगू अपने,
हिस्सेका वक़्त तुमसे;
क्यूंकि, न ये वक़्त मेरा,
न तुम मेरी.......!
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