29 October 2017

1881 - 1885 प्यार इश्क़ उम्र ऐतबार खबर इन्तजार फूल मौत यकीन किनारा शहर समझ शायरी


1881
काँटोसे बचबचके,
चलता रहा उम्रभर...
क्या खबर थी की चोट,
एक फूलसे लग जायेगी.......

1882
मौतपें भी मुझे यकीन हैं
तुमपर भी ऐतबार हैं,
देखना हैं पहेले कौन आता हैं
हमें दोनोंका इन्तजार हैं...

1883
सोच समझकर बरबाद कर,
मुझे ए इश्क़.......
बहोत प्यारसे पाला हैं,
मेरी माँने मुझे.......!

1884
बहुत दूर हैं मेरे शहरसे,
तेरे शहरका किनारा;
फिरभी हम हवाके,
हर झोंकेसे तेरा हाल पूछते हैं।

1885
इश्क करना आसान नहीं होता,
दुरीयाँ बढनेसे प्यार कम नहीं होता,
वक्त बेवक्त हो जाती हैं आँखें नम,
क्यूँकी याँदोंका कोई मौसम नहीं होता...

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