18 October 2017

1851 - 1855 दिल गम वक़्त कुदरत नज़ारे प्यास दरियाँ किनारे आदत महंगी याद खुश शायरी


1851
कहीं पर गम,
तो कहीं पर सरगम,
ये सारे कुदरतके नज़ारे हैं...!
प्यासे तो वो भी रह जाते हैं,
जिनके घर दरियाँ किनारे हैं...!

1852
मुस्कुरानेकी आदत,
कितनी महंगी पड़ी मुझे... 
याद करना ही छोड़ दिया दोस्तोंने,
ये सोचकर कि मैं बहुत खुश हूँ...

1853
हम अपने रिश्तोंके लिए,
वक़्त नहीं निकाल सके...!
फिर वक़्तने हमारे बीचसे
रिश्ता ही निकाल दिया...!

1854
दिलमें चुभ जाएँगे,
जब अपनी ज़ुबाँ खोलेंगे...
हम भी अब शहरमें,
काँटोंकी दुका खोलेंगे.......

1855
"रिश्ते किसीसे कुछ यूँ निभा लो,
कि उसके दिलके सारे गम चुरा लो;
इतना असर छोड दो किसीपें अपना,
कि हर कोई कहे हमें भी अपना बना लो...

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