27 October 2017

1876 - 1880 मोहोब्बत आँख आँसू चाहत ऐतबार झूठ हँसी खुशी बेवफा धड़कनें पैगाम मजबूरि शायरी


1876
मेरे आँसू भी तेरी चाहतको
खरीद न सके.....
और लोगोंकी झूठी हँसीने
तुम्हें अपना बना लिया.......

1877
तुम बेवफा नहीं,
यह तो धड़कनेंभी कहती हैं;
अपनी मजबूरियोंका,
एक पैगाम तो भेज देते...
1878
चाहतपर अब ऐतबार ना रहा,  
खुशी क्या हैं यह एहसास ना रहा,
देखा हैं इन आँखोने टूटे सपनोको,
इसलिए अब किसीका इंतज़ार ना रहा...

1879
याद हैं हमको अपने सारे गुनाह...
एक तो मोहोब्बत कर ली ...
दुसरा तुमसे कर ली ओर ...
तिसरा बेपनाह कर ली .......

1880
तन्हाईसे तंग आकर हम,
मोहब्बतकी तलाशमें निकले थे;
लेकिन मोहब्बत ऐसी मिली की,
ओर तन्हा कर गयी.......

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