24 October 2017

1856 - 1860 ज़िन्दगी प्यास अक्सर सूखे होठ मीठी अल्फाज इंसान जेब रिश्ते हासिल कलम दास्ताँ शायरी


1856
अक्सर सूखे हुये होठोंसे ही,
होती हैं मीठी बाते,
प्यास बुझ जाए तो अल्फाज इंसान,
दोनों बदल जाया करते हैं...

1857
मेरी जेबमें जरासा,
छेद क्या हो गया,
सिक्कोंसे ज़्यादा तो,
रिश्ते गीर गये...

1858
सब कुछ हासिल नहीं होता,
ज़िन्दगीमें यहाँ,
किसीका "काश" तो,
किसीका "गर" छूटही जाता हैं...

1859
कैसे बयाँ करु अपनी दास्ताँ...
बस इतना कहता हूँ;
जब लिखता हूँ तब...
कलम रोती हैं ।

1560
वक्तकी क्या अजीब फितरत हैं ।
किसीका कटता नहीं और,
किसीके पास होता नहीं...।

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