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29 May 2018

2811 - 2815 हँस खेल मैख़ाने शराब संजीदा होश मशवरा फ़साना तमाम सोच इबादत शायरी



2811
आए थे हँसते खेलते,
मैख़ानेमें 'फ़िराक़';
जब पी चुके शराब,
तो संजीदा हो गए...!

2812
मुझे तो होश नहीं,
आप मशवरा दीजिये...
कहाँसे छेड़ूँ फ़साना,
कहाँ तमाम करूँ.......!

2813
तेरे पासमें बैठना भी इबादत,
तुझे दूरसे देखना भी इबादत,
माला,  मंतर,  पूजा,  सजदा,
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत...!

2814
अपनी अजमतका नहीं,
खुद तुझे गाफिल एहसास;
बंदगी अपनी जो करता,
तो खुदा हो जाता......!

2815
तुझमें और मुझमें,
फर्क हैं सिर्फ इतना,
तेरा कुछ कुछ हूँ मैं,
और मेरा सब कुछ हैं तू...!