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25 April 2017

1252 इश्क़ जूनून मयख़ाने सिर दरवाज़ा शायरी


1252
फिर इश्क़का जूनून,
चढ़ रहा हैं सिरपें,
मयख़ानेसे कहदो जरा की...
दरवाज़ा खुला रखे !!!