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7 July 2022

8846 - 8850 ग़म साया सफ़र हमसफ़र हयात याद मुसाफ़िर शर्त दुश्वार राह शायरी

 

8846
एक़ तेरा ग़म ज़िसक़ो,
राह--मोतबर ज़ानें...
इस सफ़रमें हम क़िसक़ो,
अपना हमसफ़र ज़ानें.......
                         ज़ेहरा निग़ाह

8847
राह--हयातमें लाख़ों थे,
हमसफ़र एज़ाज़...
क़िसीक़ो याद रख़ा और,
क़िसीक़ो भूल ग़ए.......!!!
अहमद एज़ाज़

8848
बहुत दुश्वार थी,
राह--मोहब्बत...
हमारा साथ देते,
हमसफ़र क़्या...
          महेश चंद्र नक़्श

8849
सफ़र हैं शर्त,
मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे,
हज़ार-हा...
शज़र--साया-दार राहमें हैं...
हैंदर अली आतिश

8850
थक़ थक़क़े तिरी राहमें,
यूँ बैठ ग़या हूँ...l
गोया क़ि बस अब मुझसे,
सफ़र हो नहीं सक़ता.......ll
              क़शफ़ी मुल्तानी