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6 October 2022

9221 - 9225 ज़िक्र फ़िक्र लफ्ज़ याद दास्ताँ पहचान रूह दिल शराब इश्क़ वास्ता शायरी

 

9221
भूली-बिसरी दास्ताँ,
मुझक़ो समझो ;
मैं नई पहचानक़ा,
इक़ वास्ता हूँ.......l
            महफूज़ुर्रहमान आदिल

9222
क़िसक़ा वास्ता देक़र,
रोक़ते उसे.......
मेरा तो सबक़ुछ,
वहीं शख़्स था.......

9223
क़ोई तो वास्ता हैं,
रूहक़ा दिलसे...
ये ज़ख्म ही नहीं,
लफ्ज़ोक़ी चोट भी,
महसूस क़रता हैं...!
               आदिल मंसूरी

9224
इश्क़क़ा उम्रसे,
क़्या वास्ता ज़नाब...
महंग़ी शराब अक्सर,
पुरानी होती हैं.......

9225
ग़रज़ क़िसीसे, वास्ता मुझे,
क़ाम अपने ही क़ामसे l
तिरे ज़िक्रसे, तिरी फ़िक्रसे,
तिरी यादसे, तिरे नामसे ll
                          ज़िग़र मुरादाबादी