5206
फरेबकी महफ़िल थी,
और मै
सच बोल बैठा...
नमक के शहरमें,
अपने जख्म
खोल बैठा...
5207
मुझे भी शामिल
करो,
गुनहगारों
की महफ़िलमें...
मैं भी क़ातिल
हूँ,
मैंने भी अपनी
ख्वाहिशोंको मारा
है...
5208
महफ़िल में चल
रही थी,
हमारे कत्ल की
तैयारी;
हम पहुँचे तो बोलें,
बहुत लम्बी उम्र है
तुम्हारी...
5209
शायर तो पहलेसेही
था,
रात और दिन
कभी देखा नही...
जिंदगीकी बोझ
से मुख्तलिफ होकर,
कभी महफ़िल सजाई कभी
तनहाई...
5210
खूब कमाल करते
है,
इश्क करनेवाले भी...
महफ़िल में चर्चे
अजनबीके करते है,
और दिलमे पर्चे अपने
महबूबके पढ़ते है...