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अब राह-ए-वफ़ाक़े पत्थरक़ो,
हम फ़ूल नहीं समझेंग़े क़भी...
पहले ही क़दमपर ठेस लग़ी,
दिल टूट ग़या अच्छा ही हुआ...
मंज़र सलीम
8652सुना रही हैं वफ़ाक़ी राहें,शिक़स्त-ए-परवाज़क़ा फ़साना,क़ि दूरतक़ वादी-ए-तलबमें,पड़े हैं हर सम्त ख़्वाब टूटे.......ज़ाहिदा ज़ैदी
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राहें हैं आशिक़ीक़ी,
निहायत ही पुरख़तर...
तेरे हुज़ूर हम बड़ी,
मुश्क़िलसे आए हैं.......
अलीम उस्मानी
8654सुर्ख़ फ़ूलोंसे,महक़ उठती हैं दिलक़ी राहें...!दिन ढले यूँ,तिरी आवाज़ बुलाती हैं हमें...!!!शहरयार
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हैं इश्क़क़ी राहें पेचीदा,
मंज़िलपे पहुँचना सहल नहीं...
रस्तेमें अग़र दिल बैठ ग़या,
फ़िर उसक़ा सँभलना मुश्क़िल हैं...
आज़िज़ मातवी