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24 May 2022

8651 - 8655 दिल इश्क़ वफ़ा आशिक़ी मंज़िल ख़्वाब मुश्क़िल आवाज़ फ़ूल पत्थर क़दम राह शायरी

 

8651
अब राह--वफ़ाक़े पत्थरक़ो,
हम फ़ूल नहीं समझेंग़े क़भी...
पहले ही क़दमपर ठेस लग़ी,
दिल टूट ग़या अच्छा ही हुआ...
                              मंज़र सलीम

8652
सुना रही हैं वफ़ाक़ी राहें,
शिक़स्त--परवाज़क़ा फ़साना,
क़ि दूरतक़ वादी--तलबमें,
पड़े हैं हर सम्त ख़्वाब टूटे.......
ज़ाहिदा ज़ैदी

8653
राहें हैं आशिक़ीक़ी,
निहायत ही पुरख़तर...
तेरे हुज़ूर हम बड़ी,
मुश्क़िलसे आए हैं.......
                 अलीम उस्मानी

8654
सुर्ख़ फ़ूलोंसे,
महक़ उठती हैं दिलक़ी राहें...!
दिन ढले यूँ,
तिरी आवाज़ बुलाती हैं हमें...!!!
शहरयार

8655
हैं इश्क़क़ी राहें पेचीदा,
मंज़िलपे पहुँचना सहल नहीं...
रस्तेमें अग़र दिल बैठ ग़या,
फ़िर उसक़ा सँभलना मुश्क़िल हैं...
                                   आज़िज़ मातवी