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14 August 2018

3161 - 3165 दिल जिंदगी वाकिफ़ उम्र दुनिया रिवाज आँसू मुस्कान बरदाश्त मय्य़त नाराज़ दीया शायरी


3161
उम्रभर सँवारते रहे,
खुदको जद्दो जहदसे;
आईना जिंदगीका कहता रहा,
'कमी अब भी हैं'...!!!

3162
कौन किसको दिलमें जगह देता हैं
पेड़ भी सूखे पत्ते गिरा देता हैं
वाकिफ़ हैं हम दुनियाके रिवाजोसे
दिलभर जाये तो हर कोही भुला देता हैं

3163
कैसे हो पायेगी...
अच्छे इंसानकी पहचान,
दोनो ही नकली हो गए हैं...
आँसू और मुस्कान.......!

3164
किसको बरदाश्त हैं,
खुशी आजकल दूसरोंकी;
लोग तो मय्य़तकी भीङ देखकर भी,
जल जाते हैं.......!

3165
नाराज़ ना होना कभी यह सोचकरकी,
काम मेरा और नाम किसी औरका हो रहा हैं;
यहाँ सदियोंसे जलते तो "घी और रुई" हैं,
पर लोग कहते हैं की "दीया" जल रहा हैं...!