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11 August 2018

3146 - 3150 दिल दुनिया आवारा मेहनत कश्ती किनारा समझ नादान उम्मीद रोशनी गलती शायरी


3146
काग़ज़की कश्ती थी,
पानीका किनारा था;
खेलनेकी मस्ती थी,
ये दिल आवारा था;
कहाँ गए,
इस समझदारीके दलदलमें;
वो नादान बचपन भी,
कितना प्यारा था।

3147
मैं गिरा और मेरी,
उम्मीदोंके मिनार गिरे...
पर कुछ लोग मुझे गिरानेमें,
कई बार गिरे.......!

3148
अपनी "रोशनी" की बुलन्दिओंपर,
कभी ना इतराना...
चिराग सबके बुझते हैं,
हवा किसीकी सगी नहीं होती...

3149
गलती होनेपर साथ छोड़ने वाले तो,
बहुत मिलते हैं;
गलतीको समझाकर साथ निभाने वालोंकी,
सख़्त ज़रूरत हैं.......!!!

3150
कुछ नहीं मिलता दुनियामें,
मेहनतके बगैर;
मेरा अपना साया,
मुझे धूपमें आनेके बाद मिला...!