3146
काग़ज़की कश्ती
थी,
पानीका
किनारा था;
खेलनेकी मस्ती
थी,
ये दिल
आवारा था;
कहाँ आ गए,
इस समझदारीके
दलदलमें;
वो नादान बचपन भी,
कितना प्यारा था।
3147
न मैं गिरा
और न मेरी,
उम्मीदोंके मिनार
गिरे...
पर कुछ लोग
मुझे गिरानेमें,
कई बार गिरे.......!
3148
अपनी
"रोशनी" की बुलन्दिओंपर,
कभी ना
इतराना...
चिराग सबके
बुझते हैं,
हवा किसीकी
सगी नहीं होती...
3149
गलती होनेपर
साथ छोड़ने वाले
तो,
बहुत मिलते
हैं;
गलतीको समझाकर साथ निभाने
वालोंकी,
सख़्त
ज़रूरत हैं.......!!!
3150
कुछ नहीं मिलता
दुनियामें,
मेहनतके
बगैर;
मेरा अपना साया,
मुझे धूपमें आनेके
बाद मिला...!
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