16 August 2018

3171 - 3175 रूबरू ग़ुरूर रिश्ते हैसियत तकलीफें नज़र अंदाज़ बर्दाश्त दर्द हिसाब शायरी


3171
रूबरू होनेकी तो छोड़िये...
गुफ़्तगूसे भी क़तराने लगे हैं'
ग़ुरूर ओढ़े हैं रिश्ते...
अपनी हैसियतपर इतराने लगे हैं...

3172
तकलीफें तो हज़ारों हैं,
इस ज़मानेमें...
बस कोई अपना नज़र अंदाज़ करे,
तो बर्दाश्त नहीं होता !

3173
कोई हमें भी सिखा दो
ये लफज़ों से खेलना,
हमारे पास भी
दर्द बे-हिसाब हैं !!!

3174
बहुत जीयें उनके लिए,
जिनको हम पसंद करते थे...
अब जीना हैं उनके लिए,
जो हमे पसंद करते हैं.......!

3175
मशहूर होनेका शौक,
किसे हैं.......
अपने ही ठीकसे पहचान लें,
काफी हैं.......!

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