5 August 2018

3116 - 3120 दिल इश्क़ मुहब्बत धडकन बेचैन तड़प वजूद निगाहें दीदार रुखसार चाहत ख्वाब नकाब सुरूर लफ़्ज़ वजह शायरी


3116
धड़कने मेरी बेचैन रहती हैं,
क्यूँकि तेरे बग़ैर...
यह धड़कती कम हैं,
और तड़पती ज़्यादा हैं.......!

3117
तरस गई हैं निगाहें
उनके दीदार-ए-रुखसारको।
और वो हैं की ख्वाबोमें भी
नकाबमें आते हैं...।।

3118
अर्ज किया हैं,
नींद मेरी ------- ख्वाब तेरे,
दिल मेरा ------- चाहत तेरी,
वजूद मेरा ------- सुरूर तेरा,
उसपर तेरा कहना ------- जहां हो खुश रहो...
तुम्हीं बताओ ------- क्या खाक जी पाएगें हम.......

3119
बेवजह कुछ नहीं...
ना लफ़्ज़ मेरे,
ना इश्क़ मेरा.......!!!!!

3120
बेवजह हो गयी,
तुमसे इतनी मुहब्बत;
चलो ... अब वजह बन जाओ,
जीनेकी.......!!!

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