19 August 2018

3181 - 3185 जिन्दगी दिल मोहब्बत बिखरी नज़र किस्मत खामोश मौत राह कब्र शायरी


3181
कहाँ कहाँ से समेटु,
ज़िन्दगी तुझको...
जहाँ जहाँ देखु,
तू बिखरी नज़र आती हैं...।।

3182
कैसे छोड़ दूँ आखिर,
तुमसे मोहब्बत करना,
तुम किस्मतमें ना सही,
दिलमें तो हो.......!

3183
पता नहीं होशमें हूँ...
या बेहोश हूँ मैं...
पर बहूत सोच समझकर,
खामोश हूँ मैं.......!

3184
मौतने पुछा -
मैं आऊँगी तो, स्वागत करोगे कैसे...!
मैंने कहा -
राहमें फूल बिछाकर पूछुंगा...
कि आनेमें इतनी देर कैसे...?

3185
कब्रको देखके,
ये रंज होता हैं.......
के इतनीसी जगह पानेके लिए,
कितना जीना पड़ता हैं...!

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