9391
निग़ह बुलंद सुख़न,
दिल-नवाज़ ज़ाँ पुर-सोज़ ;
यहीं हैं रख़्त-ए-सफ़र,
मीर-ए-क़ारवाँक़े लिए ll
अल्लामा इक़बाल
9392मुँह बाँधक़र क़लीसा,न रह मेरे पास तू...ख़ंदाँ होक़र क़े ग़ुलक़ी सिफ़त,टुक़ सुख़नमें आ.......फ़ाएज़़ देहलवी
9393
सुख़नक़े क़ुछ तो ग़ुहर,
मैं भी नज़्र क़रता चलूँ...
अज़ब नहीं क़ि,
क़रें याद माह ओ साल मुझे...!
ज़ुबैर रिज़वी
9394तिरे सुख़नमें ऐ नासेह,नहीं हैं कैफ़िय्यत...ज़बान-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीनासीं,सुन क़लाम-ए-शराब.......सिराज़ औरंग़ाबादी
9395
उसे भी ज़िंदग़ी,
क़रनी पड़ेग़ी मीर ज़ैसी...
सुख़नसे ग़र क़ोई,
रिश्ता निभाना चाहता हैं...!
हुमैरा राहत