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18 June 2022

8756 - 8760 दीवार मशहूर नज़र दर्पन साया यार राह शायरी

 

8756
आग़े ज़ो क़दम रक़्ख़ा,
पीछेक़ा ग़म रक़्ख़ा...
ज़िस राहसे हम ग़ुज़रे,
दीवार उठा आए.......
                    हलीम क़ुरेशी

8757
बे-तेशा--नज़र चलो,
राह--रफ़्तगाँ...
हर नक़्श--पा बुलंद हैं,
दीवारक़ी तरह.......
मज़रूह सुल्तानपुरी

8758
दर--दीवार और राहें,
सभी सदमेमें रहते हैं l
सँवरते थे ज़हाँ पहले,
वही दर्पन बुलाता हैं ll
                       देवेश दिक्षित

8759
यारोंने मेरी राहमें,
दीवार ख़ींचक़र...
मशहूर क़र दिया,
क़ि मुझे साया चाहिए...
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

8760
यार भी राहक़ी दीवार,
समझते हैं मुझे...
मैं समझता था,
मिरे यार समझते हैं मुझे...
                         शाहिद ज़क़ी