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आग़े ज़ो क़दम रक़्ख़ा,
पीछेक़ा न ग़म रक़्ख़ा...
ज़िस राहसे हम ग़ुज़रे,
दीवार उठा आए.......
हलीम क़ुरेशी
8757बे-तेशा-ए-नज़र न चलो,राह-ए-रफ़्तगाँ...हर नक़्श-ए-पा बुलंद हैं,दीवारक़ी तरह.......मज़रूह सुल्तानपुरी
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दर-ओ-दीवार और राहें,
सभी सदमेमें रहते हैं l
सँवरते थे ज़हाँ पहले,
वही दर्पन बुलाता हैं ll
देवेश दिक्षित
8759यारोंने मेरी राहमें,दीवार ख़ींचक़र...मशहूर क़र दिया,क़ि मुझे साया चाहिए...ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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यार भी राहक़ी दीवार,
समझते हैं मुझे...
मैं समझता था,
मिरे यार समझते हैं मुझे...
शाहिद ज़क़ी