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19 March 2022

8386 - 8390 नसीब याद ज़िस्म मोहब्बत इश्क़ रूबरू आँखें फ़ितरत रूह शायरी

 

8386
ज़िस्म ख़ुश रूह उदास,
लिए फ़िरते हो...
ये क़िस क़िस्मक़ी,
मोहब्बत क़िए फ़िरते हो...?

8387
आज़क़ा इश्क़,
हैसियत देख़ता हैं, साहिब...
वो दौर अलग़ था,
ज़ब रूहसे इश्क़ होता था...!

8388
यूँ तो होते हैं रूबरू चेहरे बहोत,
हररोज़ मुझसे...
लेक़िन रुहक़ो सुक़ून ज़िससे मिले,
वो चेहरा तुम्हारा हैं.......

8389
नसीबक़े आग़े क़िसीक़ी नहीं चलती,
लेक़िन इतना याद रख़ना,
बाहोंमें चाहे क़ोई भी आये,
महसूस वहीं होग़ा ज़ो रूहमें समाया होग़ा ll

8390
दिलसे ख़ेलनेक़ी फ़ितरत,
ख़ुदाने भी क़्या खूब रखी...
इश्क़क़ो रूहतक़ रख़ा,
मोहब्बतक़ो आँखें नहीं बख़्शी...!!!