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28 July 2018

3081 - 3085 परवाह विश्वास रिश्ते वक़्त झुठे पत्थर वाकिफ़ फासला अजीज घाव लगाव कड़वा लहजे जुबां कसूर वज़ीर शायरी


3081
उनकी 'परवाह' मत करो,
जिनका 'विश्वास' " वक़्त " के साथ बदल जाये.
'परवाह' सदा 'उनकी' करो,
जिनका 'विश्वास' आपपर तब भी रहे,
जब आपका  वक़्त  बदल जाये l

3082
झुठे हैं वो जो कहते हैं...
हम सब मिट्टीसे बने हैं,
मैं कई अपनोंसे वाकिफ़ हूँ,
जो पत्थरके बने हैं...!

3083
चंद फासला रखिए,
रिश्तोंके दरमियान..
बदलने वाले अक्सर
बेहद अजीज ही हुआ करते हैं..!!

3084
"चंद फासला जरूर रखिए 
हर रिश्तेके दरमियान!
क्योंकि"नहीं भूलती दो चीज़ें 
चाहे जितना भुलाओ....!...
..एक "घाव"और दूसरा "लगाव"...
बेअदबी नीमकी नहीं कि वो कड़वा हैं...

3085
खुदगर्ज़ जुबांको केवल मीठा ही पसन्द हैं...
तरक्कीकी फसल हम भी काट लेते,
थोडेसे तलवे अगर हम भी चाट लेते...
हाँ ! बस मेरे लहजेमें जी हुजूर न था,
इसके अलावा मेरा कोई कसूर न था..
अगर पलभर को भी मैं बे-जमीर हो जाता,
यकीन मानिए, मैं कबका वज़ीर हो जाता...l