10116
अपने टूटे फूटे ख़्वाबोंकी,
ताबीर बनाता हूँ;
मैं बिखरे लफ्ज़ोंसे,
काग़ज़पर तस्वीर बनाता हूँ ll
10117
जब
आँखोंमें लगाता हूँ,
तो
चुपके-चुपके हंस-हंसकर...
तेरी
तस्वीर भी कहती ,
सूरत
ऐसी होती है !
दाग़
देहलवी
10118
मेरी
इक तस्वीर देखी तुमने,
पलभर प्यारसे...
और
वो तस्वीर उस पल,
और
प्यारी हो गई...!
10119
एक
तस्वीर बनाऊंगा तेरी...
और
फ़िर हाथ लगाऊंगा तुझे...!
10120
इस तरहसे न आज़माओ मुझे,
उसकी तस्वीर मत दिखाओ मुझे...
अली ज़ारयून