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14 November 2025

10001 - 10005 मंज़िल भटक़ मुराद मुद्दआ तक़दीर मंज़िल, ग़ुबार-ए-क़ारवाँ मंज़िल शायरी

 
10001
क़ोई मंज़िलक़े क़रीब आक़े,
भटक़ ज़ाता हैं l
क़ोई मंज़िलपें पहुँचता हैं,
भटक़ ज़ानेसे...ll
क़सरी क़ानपुरी

10002
मैं अक़ेला हीं चला था,
ज़ानिब-ए-मंज़िल मग़र...
लोग़ साथ आते ग़ए,
और क़ारवाँ बनता ग़या
मज़रूह सुल्तानपुरी

10003
मंज़िल मिली, मुराद मिली,
मुद्दआ मिला...
सब क़ुछ मुझे मिला ज़ो,
तिरा नक़्श-ए-पा मिला......
                         सीमाब अक़बराबादी

10004
मेरी तक़दीरमें मंज़िल नहीं हैं,
ग़ुबार-ए-क़ारवाँ हैं और मैं हूँ ll

10005
नहीं निग़ाहमें मंज़िल,
तो ज़ुस्तुज़ूहीं सहीं...
नहीं विसाल मयस्सर,
तो आरज़ूहीं सहीं...!
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़क़े क़रीब आक़े,
भटक़ ज़ाता हैं l
क़ोई मंज़िलपें पहुँचता हैं,
भटक़ ज़ानेसे...ll
क़सरी क़ानपुरी

10002
मैं अक़ेला हीं चला था,
ज़ानिब-ए-मंज़िल मग़र...
लोग़ साथ आते ग़ए,
और क़ारवाँ बनता ग़या
मज़रूह सुल्तानपुरी

10003
मंज़िल मिली, मुराद मिली,
मुद्दआ मिला...
सब क़ुछ मुझे मिला ज़ो,
तिरा नक़्श-ए-पा मिला l
               सीमाब अक़बराबादी

10004
मेरी तक़दीरमें मंज़िल नहीं हैं
ग़ुबार-ए-क़ारवाँ हैं और मैं हूँ

10005
नहीं निग़ाहमें मंज़िल,
तो ज़ुस्तुज़ूहीं सहीं...
नहीं विसाल मयस्सर,
तो आरज़ूहीं सहीं...!
               फ़ैज़ अहमद फ़ैज़