Showing posts with label मंजिल अजनबी राहें रास्ता दिल नसीहत बरसात शायरी. Show all posts
Showing posts with label मंजिल अजनबी राहें रास्ता दिल नसीहत बरसात शायरी. Show all posts

19 August 2017

1681 - 1685 दिल मोहब्बत इज़हार चाहत मंजिल फ़ितरत नाराज अजनबी राहें रास्ता नसीहत बरसात शायरी


1681
मंजिलका नाराज होना भी,
जायज था...,
हम भी तो अजनबी राहोंसे
दिल लगा बैठे थे.......!

1682
मुझे मुहब्बत होनी थी,
सो हो ग़यी...
अब नसीहत छोड़िये,
और दुआ क़ीज़िए...!


1683
"कल तक उड़ती थी जो मुँह तक,
आज पैरोंसे लिपट गई,
चंद बूँदे क्या बरसी बरसातकी,
धूलकी फ़ितरत ही बदल गई... ”

1684
थक सा गया हैं,
मेरी चाहतोंका वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे
तो हम इज़हार नहीं करते...!!!

1685
कैसी अजीब सी हैं,
ये मोहब्बतकी राहें ,
रास्ता वो भटक गये और
मंजिल हमारी खो गयी.......!