7291
गुनहगारोंमें शामिल हैं,
गुनाहोंसे नहीं वाकिफ...
सज़ाको जानते हैं हम,
खुदा ज़ाने ख़ता क्या हैं...?
चकबस्त लखनवी
7292तन्हाईके लम्हें अब तेरी,यादोंका पता पूछते हैं...!तुझेमें भूलनेकी बात करूँ तो,ये तेरी ख़ता पूछते हैं.......!!!
7293
बहुत करीब आ के,
उसने ये कहा...
कोई ख़ता तो कर कि,
मैं माफ करूँ.......!
7294नज़रअंदाज़ करनेवाले,तेरी कोई ख़ता ही नहीं...मोहब्बत क्या होती हैं,शायद तुझको पता ही नहीं...!
7295
हर इल्ज़ामका हकदार,
वो
हमें बना ज़ाते
हैं...
हर ख़ताकी सज़ा,
हर ख़ताकी सज़ा,
वो
हमें सुना ज़ाते
हैं...
और हम हर बार,
और हम हर बार,
खामोश रह
ज़ाते हैं...
क्यों कि वो अपने होनेका,
क्यों कि वो अपने होनेका,
हक
जता ज़ाते हैं...!