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6 June 2020

5976 - 5980 मोहब्बत प्यार राह ज़ख्म अश्क रब ताबीज इंतज़ार इजहार इबादत शायरी



5976
किसीको राह दिखलाई,
किसीका ज़ख्म सहलाया;
किसीके अश्क जब पोंछे,
इबादतका मज़ा आया ll

5977
इबादतमें बहुत,
ताकत हैं जनाब...
फकत धागा भी,
ताबीज बन जाता हैं...!

5978
जो पूछते हैं,
बिन देखे, बिन मिले...
मोहब्बत कैसे होती हैं...?
कह दो उनसे,
बिल्कुल उस खुदाकी,
इबादत जैसी होती हैं.......!

5979
इंतज़ार, इजहार, इबादत...
सब तो किया मैंने...
और कैसे बताऊँ,
प्यारकी गहराई क्या हैं...?

5980
तो क्या हुआ जो,
तुम नहीं मिलते हमसे...
मिला तो रब भी नहीं,
पर इबादत कहाँ रुकी हमसे...!