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7 March 2020

5571 - 5575 मोहब्बत याद जिन्दगी फुर्सत गलियाँ खुशबू लफ़्ज सफर जुदाई महक शायरी


5571
मिली जो फुर्सत तो,
आएंगे और पियेंगे ज़रूर...
सुना हैं तुम चाय बनाती हो,
तो गलियाँ महक उठती हैं...!

5572
उनकी यादोंकी बूँदें,
बरसी जो फिरसे...
जिन्दगीकी मिट्टी,
महकने लगी हैं...!


5573
इतनी बिखर जाती हैं,
तुम्हारे नाम की खुशबू हमारे लफ़्जोंमें...
लोग पूछने लगते हैं कि,
क्यों महकती रहती हैं शायरी तुम्हारी...!

5574
उनके उतारे हुए दिन,
पहनके अब भी मैं...
उनकी महकमें कई रोज़,
काट देता हूँ.......!


5575
सफर--मोहब्बत,
अब खतम ही समझिए साहब...
उनके रवैयेसे अब,
जुदाईकी महक अने लगी हैं...