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11 July 2017

1501 - 1505 दिल इश्क प्यार ज़िंदगी दुनियाँ बेसबब गुज़रा उलझ रंगीन किताब हिस्सा उम्र फर्क पन्ने दीवानी बर्बाद शायरी


1501
कहाँ उलझ गया दिल,
किस प्यारमें.......
बड़ा बेसबब गुज़रा,
एक हिस्सा उम्रका,
बेकारमें.......
1502
ज़िंदगी तो सभीके लिए,
एक रंगीन किताब हैं;
फर्क हैं तो बस इतना कि,
कोई हर पन्नेको दिलसे पढ़ रहा हैं;
और कोई दिल रखनेके लिए पन्ने पलट रहा हैं
1503
तेरे इश्कका सुरूर था,
जो खुदको बर्बाद किया,
वरना दुनियाँ मेरी भी,
दीवानी थी।
1504
लोगों मैं और हम मे बस इतना फर्क हैं...
लोग..... दिलको दर्द देते हैं,
और हम....... दर्द देने वालेको,
दिल देते हैं ...
1505
"दोस्ती" रूहमें उतरा हुआ,
मौसम हैं...
ताल्लुक कम कर देनेसे,
मोहब्बत कम नहीं होती...