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7 August 2017

1626 - 1630 मोहब्बत इश्क़ लब गाल नजर फासले सफर मयखाने दफ़्न वादा किताब याद हिचकियाँ शायरी


1626
लबौसे गाल, फिर तेरी,
नजर तक का सफर, तौबा...!
बहुत कम फासले पर,
इतने मयखाने नहीं होते ।।

1627
किताब ए इश्क़में
क्या कुछ दफ़्न मिला,
मुड़े हुए पन्नोंमें एक...
भूला हुआ वादा मिला !!!

1628
तुम लाख भुलाकर देखो मुझे...
मैं फिर भी याद आऊँगी,
तुम पानी पी पीकर थक जाओगे,
मैं हिचकियाँ बनकर सताउंगी.......

1629
सुकून मिल गया मुझको,
बदनाम होकर...
आपके हर इक इल्ज़ामपें,
यूँ बेजुबां होकर...
लोग पढ़ ही लेंगें आपकी आँखोंमें,
मेरी मोहब्बत...
चाहे कर दो इनकार,
अंजान होकर.......

1630
रोज़ रोज़ जलते हैं,
फिरभी खाक़ नहीं हुए;
अजीब हैं कुछ ख़्वाब,
बुझकर भी राख़ न हुए...!