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13 July 2022

8856 - 8860 हस्ती सफ़र दहलीज़ रौशनी ख़याल निशाँ मंज़िल दुश्मन ख़्वाब क़दम राह शायरी

 

8856
हस्तीसे ता-अदम हैं,
सफ़र दो क़दमक़ी राह...
क़्या चाहिए हैं हमक़ो,
सर अंज़ामक़े लिए.......
             शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8857
दश्त--हस्तीक़ा हैं,
दरपेंश सफ़र मुद्दतसे...
बे-निशाँ मंज़िल--मक़्सूद हैं,
राहें क़ैदी.......
हिना रिज़्वी

8858
शबक़ी दहलीज़से,
उस सम्त हैं राहें क़ैसी...
पर्दा--ख़्वाबमें,
ये क़ैसा सफ़र रक़्ख़ा हैं.......
                            सलीम फ़िग़ार

8859
अव्वल अव्वल थीं राहें,
बड़ी पुर-ख़तर क़ौन था ;
ज़ुज़ ग़म--दिल,
शरीक़--सफ़र ;
फ़िर ज़ो पड़ने लग़ी,
मंज़िलोंपर नज़र ;
दोस्त दुश्मन सभी,
यार बनते ग़ए ll
मुज़ीब ख़ैराबादी

8860
नया ख़याल,
नई रौशनी नई राहें...
सफ़र नया हैं,
क़दम देख़भाल क़र रख़ना...!
                                    नूर मुनीरी