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5 March 2020

5556 - 5560 ख़ुशी उदासियाँ फूल दस्तख़त वजूद ज़हन ज़िन्दगी तबाह मुस्कुरा शायरी


5556
मेरी उदासियाँ तुमको,
नजर आये भी तो कैसे...
तुम्हे देखकर तो हम,
मुस्कुराने लगते हैं...!

5557
हमारे शहरमें फूलोंकी,
कोई दुकान नहीं...
बस एक आपके मुस्कुरानेसे,
काम चलता हैं.......!

5558
क्या ऐसा नहीं हो सकता,
के हम तुमसे तुमको माँगे...
और तुम मुस्कुराके कहो,
के अपनी चीजें माँगा नहीं करते...!

5559
क्या दस्तख़त दूँ?
अपने वजूदका मैं...
किसीके ज़हनमें आऊँ,
और वो मुस्कुरादे...
बस वही काफी हैं !!!

5560
मुफ़्तमें नहीं सीखा,
उदासीमें मुस्करानेका हुनर...
बदलेमें ज़िन्दगीकी,
हर ख़ुशी तबाह की हैं हमनें...