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5 June 2018

2836 - 2840 ज़िन्दगी महोब्बत सपने फ़िज़ूल क़ैद सलाख़े आँख़े दाग शायरी


2836
- खुदा ज़िन्दगीमें फिरसे कोई,
ऐसा मोड़ ना आये l
की शायरी करते करते,
किसीसे फिरसे महोब्बत हो जाये.......ll

2837
अपनोंको दूर होते देखा,
सपनोंको चूर होते देखा;
अरे लोग कहते हैं फ़िज़ूल कभी रोते हीं,
हमने फूलाेंको भी तन्हाईयाेंमें रोते देखा !

2838
क़ैदख़ानें हैं,
बिन सलाख़ोंके...
कुछ यूँ चर्चें हैं,
तुम्हारी आँखोंके.......

2839
टूटे हुए काँचकी तरह,
चकना चूर हो गए...!
किसीको लग ना जायें इसलिए...
सबसे दूर हो गये...!

2840
मुहब्बत थी तो,
चाँद अच्छा था;  
उतर गई तो,
दाग दिखने लगे...!